अगर आप उत्तर प्रदेश में रहते हैं, तो यहां आपको कई प्रसिद्ध और पवित्र माता दुर्गा के मंदिरों में दर्शन का अवसर मिल सकता है। नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में देवी के चरणों में शीश झुकाने का यह सुनहरा मौका होता है।

चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 30 मार्च 2025 से हो रहा है। यह देवी दुर्गा की आराधना का त्योहार है, जिसमें नौ दिनों तक देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। इन दिनों लोग अपने नजदीकी देवी मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं। भारत में कई प्राचीन और चमत्कारी देवी मंदिर हैं, जिनमें कुछ शक्तिपीठ के रूप में जाने जाते हैं। शक्तिपीठ वे पवित्र स्थान हैं, जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे।
यदि आप नवरात्रि के पावन अवसर पर देवी दुर्गा के प्राचीन और सिद्ध मंदिरों के दर्शन की इच्छा रखते हैं, तो अपने आस-पास के मंदिरों की यात्रा कर सकते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश में, आपको कई प्रसिद्ध और पवित्र देवी मंदिरों में दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो सकता है।

मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी मंदिर
मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्यवासिनी माता का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर विंध्याचल पर्वत पर है, और यहां देवी के महामाया रूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जब देवी ने राक्षस महिषासुर का वध किया था, तो उन्होंने यहीं आकर निवास किया। इस मंदिर में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है और कहा जाता है कि सृष्टि के अंत तक भी यह मंदिर बना रहेगा। पूरे साल यहां भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है।

सीतापुर में माता ललिता देवी मंदिर
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के मिश्रिख में स्थित नैमिष धाम एक बहुत पवित्र स्थान माना जाता है। यहां मां ललिता देवी का प्रसिद्ध मंदिर है, जो 52 शक्तिपीठों में से एक है। ऐसा विश्वास है कि यहां माता सती का हृदय गिरा था। लोग दूर-दूर से यहां दर्शन करने आते हैं। खासकर नवरात्रि के समय यहां मेले जैसा माहौल बन जाता है।

बलरामपुर में देवीपाटन मंदिर
बलरामपुर जिले में स्थित देवीपाटन मंदिर, 52 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर तुलसीपुर में है, जहां माता सती का बायां कंधा और वस्त्र गिरे थे, इसलिए इसे “पाटन” कहा गया। यहां माता के मातेश्वरी रूप की पूजा की जाती है। नवरात्रि के समय इस मंदिर में बहुत बड़ा आयोजन होता है, और आसपास के जिलों से लोग देवीपाटन के दर्शन करने के लिए आते हैं।

गोरखपुर में मां तरकुलहा मंदिर
गोरखपुर में तरकुलहा देवी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कई चमत्कारी कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम के समय, जब अंग्रेज मंदिर के पास से गुजरते थे, तो क्रांतिकारी बंधू सिंह उनका सिर काटकर देवी को अर्पित करते थे। अंग्रेजों ने बंधू सिंह को गिरफ्तार करके फांसी की सजा सुनाई। जब उन्हें फांसी दी जाने लगी, तो छह बार फांसी का फंदा टूट गया। अंत में जल्लाद ने डरते हुए बंधू सिंह से प्रार्थना की कि अगर उसने फांसी नहीं दी, तो उसे अंग्रेज मार देंगे। तब बंधू सिंह ने देवी से प्रार्थना की और सातवीं बार फांसी का फंदा काम कर गया।
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