भानगढ़ दुर्ग : जहाँ सूर्यास्त के बाद बंद हो जाते हैं सभी दरवाजे!
नमस्ते दोस्तों! हमारी वेबसाइट Suraj Explore में आपका स्वागत है। अगर आप राजस्थान की भानगढ़ दुर्ग यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो आप सही जगह पर हैं। आज, हम आपको भानगढ़ दुर्ग यात्रा में दर्शनीय अनिवार्य स्थलों की यात्रा पर ले जा रहे हैं।
भानगढ़ दुर्ग, राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है और यह एक प्राचीन रहस्यमय धरोहर है। इसके नाम के पीछे कई किस्से और पुरानी कहानियाँ छिपी हुई हैं। यहाँ के मनमोहक दृश्य, प्राचीन मंदिर और रोमांचक कहानियों से आपका मन मोह लेते हैं।
यहाँ आपको देखने को मिलेगा एक अद्वितीय संग्रहालय, प्राचीन मंदिर, और विभिन्न कला स्थल। इसके साथ ही, Bhangarh Fort | भानगढ़ दुर्ग का आकर्षक अपनी ध्यानाकर्षण क्षमता के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के प्राचीन संरचनाओं और अद्भुत आर्किटेक्चर को देखना एक अनूठा अनुभव है।
Bhangarh Fort | भानगढ़ दुर्ग का इतिहास
Bhangarh Fort | भानगढ़ दुर्ग, राजस्थान के अलवर जिले में स्थित एक प्राचीन किला है। यह अपनी भव्य वास्तुकला और रहस्यमय कहानियों के लिए जाना जाता है। 16वीं शताब्दी में, आमेर के राजा भगवान दास ने भानगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था। यह किला अरावली पहाड़ियों की गोद में स्थित है और चारों तरफ से घने जंगलों से घिरा हुआ है।

भानगढ़ का शासन:
भानगढ़ का शासन आमेर से ही चलाते थे। छत्र सिंह के बेटा अजब सिंह थे। यह भी शाही मनसबदार थे। अजब सिंह ने अपने नाम पर अजबगढ़ बसाये थे।
भानगढ़ का पतन:
कहा जाता है कि भानगढ़ के पतन के पीछे एक तांत्रिक का श्राप था। तांत्रिक, सिंघिया नाम का एक शक्तिशाली तांत्रिक था, जो भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती से प्यार करता था। रत्नावती ने सिंघिया के प्रेम का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
शाप:
सिंघिया ने रत्नावती और भानगढ़ को श्राप दिया कि सूर्यास्त के बाद कोई भी जीवित प्राणी भानगढ़ में नहीं रह पाएगा।
भानगढ़ दुर्ग का वास्तुकला
भानगढ़ दुर्ग अपनी भव्य वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह किला अरावली पहाड़ियों की गोद में स्थित है और चारों तरफ से घने जंगलों से घिरा हुआ है।
दीवारें और द्वार:
भानगढ़ दुर्ग की दीवारें 30 फीट ऊंची और 12 फीट चौड़ी हैं। किले में तीन मुख्य द्वार हैं:
- लाहौरी गेट: यह किले का मुख्य द्वार है और यह लाहौर की ओर खुलता है।
- दिल्ली गेट: यह द्वार दिल्ली की ओर खुलता है।
- आगरा गेट: यह द्वार आगरा की ओर खुलता है।
महल:
भानगढ़ दुर्ग में कई महल हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- जहाँगीर महल: यह किले का सबसे बड़ा महल है और यह मुगल सम्राट जहाँगीर के नाम पर है।
- महल-ए-खास: यह किले का सबसे खूबसूरत महल है और यह अपनी नक्काशीदार खिड़कियों और दरवाजों के लिए जाना जाता है।
- दीवान-ए-आम: यह किले का सार्वजनिक दरबार था।
- दीवान-ए-खास: यह किले का निजी दरबार था।
मंदिर:
भानगढ़ दुर्ग में कई मंदिर हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- गंगा मंदिर: यह किले का सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है और यह देवी गंगा को समर्पित है।
- हनुमान मंदिर: यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है।
- जगन्नाथ मंदिर: यह मंदिर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को समर्पित है।
बगीचे:
भानगढ़ दुर्ग में कई सुंदर बगीचे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- नौबतखाना: यह किले का मुख्य बगीचा है।
- चारबाग: यह किले का एक और सुंदर बगीचा है।
भानगढ़ दुर्ग, अपनी भव्य वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह किला अरावली पहाड़ियों की गोद में स्थित है और चारों तरफ से घने जंगलों से घिरा हुआ है।
भानगढ़ दुर्ग की भूतहा कहानियां

भानगढ़ दुर्ग अपनी भूतहा कहानियों के लिए जाना जाता है। दो लोकप्रिय कहानियां इस किले की भयानक प्रतिष्ठा में योगदान करती हैं:
- तपस्वी का श्राप
कहा जाता है कि किले के निर्माण के दौरान, राजा माधो सिंह ने गुरु बालू नाथ नामक एक तपस्वी से अनुमति मांगी थी। तपस्वी ने अपनी सहमति दी, लेकिन एक शर्त पर – किले की छाया कभी भी तपस्वी के निवास स्थान पर नहीं पड़नी चाहिए। समय के साथ, राजा के वंशजों ने किले का विस्तार किया, जिसके कारण इसकी छाया तपस्वी के निवास स्थान पर पड़ने लगी। क्रोधित होकर, तपस्वी ने किले को श्राप दिया, जिसके कारण यह सुनसान हो गया और दुर्ग में रहने वालों की आत्माएं फंस गईं।
- प्रेम का काला जादू
एक अन्य लोकप्रिय कहानी राजकुमारी रत्नावती और तांत्रिक सिंधुबाबा के बीच प्रेम काला जादू का है। तांत्रिक सिंधुबाबा राजकुमारी रत्नावती के रूप और सुंदरता से मोहित हो गया और उसे अपने प्रेम में पागल करने के लिए काला जादू का सहारा लेने का फैसला किया। राजकुमारी रत्नावती को सिंधुबाबा के इरादे का पता चल गया, और उसने उसकी चालों को नाकाम कर दिया। क्रोधित होकर, सिंधुबाबा ने किले को श्राप दिया, जिसके कारण यह हमेशा के लिए बर्बाद हो गया और दुर्ग में रहने वालों की आत्माएं फंस गईं।
भानगढ़ दुर्ग का भयानक वातावरण
कई लोग दावा करते हैं कि उन्होंने भानगढ़ दुर्ग में अशरीरी चीखें सुनी हैं और क्षणभंगुर भूतों को देखा है। किले में घूमने वाले लोग अक्सर एक अजीब सी बेचैनी महसूस करते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने सूर्यास्त के बाद प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया है।
भानगढ़ दुर्ग की यात्रा
भानगढ़ दुर्ग एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश शुल्क ₹25 है। पर्यटक किले में घूमने के लिए गाइड की सेवाएं ले सकते हैं।
भानगढ़ दुर्ग जाने का सबसे अच्छा समय
भानगढ़ दुर्ग जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच है। इस समय मौसम सुहावना होता है और तापमान ठंडा होता है।
यहाँ कुछ कारण दिए गए हैं कि अक्टूबर से मार्च भानगढ़ दुर्ग जाने का सबसे अच्छा समय क्यों है
- मौसम: अक्टूबर से मार्च के बीच, मौसम सुहावना होता है और तापमान ठंडा होता है। यह मौसम दर्शनीय स्थलों की यात्रा और किले की खोज के लिए आदर्श है।भानगढ़ दुर्ग सर्दियों में
- भीड़: इस समय, भीड़ कम होती है और आप किले का शांति से आनंद ले सकते हैं।
- त्यौहार: इस समय, कई त्यौहार होते हैं, जैसे कि दशहरा और दीपावली, जिन्हें आप किले में देख सकते हैं।
भानगढ़ दुर्ग तक कैसे पहुंचे?
भानगढ़ दुर्ग तक पहुंचने के लिए कई विकल्प हैं:
- दिल्ली से: आप दिल्ली सराय रोहिल्ला स्टेशन से अलवर जंक्शन स्टेशन के लिए ट्रेन ले सकते हैं। वहां से, टैक्सी या रिक्शा किराए पर लेकर आप लगभग 2 घंटे में भानगढ़ दुर्ग पहुंच सकते हैं।
- जयपुर से: जयपुर से भानगढ़ तक जाने के लिए बस या टैक्सी उपलब्ध हैं। यात्रा में लगभग 2-2.5 घंटे लगते हैं।
भानगढ़ का किला सूर्योदय से सूर्यास्त तक दर्शकों के लिए खुला रहता है।
प्रवेश शुल्क मामूली है, जो आम तौर पर ₹10-20 के आसपास होता है।
सूर्यास्त के बाद किले में प्रवेश वर्जित है।
भानगढ़ का किला अपेक्षाकृत छोटा है और कुछ ही घंटों में घूमने लायक है।
भानगढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थलों में शामिल हैं
भानगढ़ दुर्ग अपने ऐतिहासिक अवशेषों और रहस्यमयी कहानियों के लिए जाना जाता है। घूमने के लिए आने वाले पर्यटकों को यहां कई दर्शनीय स्थल मिल जाएंगे। भव्य परोला गेट से प्रवेश कर दुर्ग के प्रांगण में प्रवेश किया जा सकता है। परिसर के अन्दर हनुमान मंदिर और गणेश मंदिर स्थित हैं, जो आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराते हैं।
इतिहास प्रेमियों को शाही महल के खंडहर जरूर देखने चाहिए। ये भग्नावशेष भानगढ़ के राजसी अतीत की कहानी बयां करते हैं। मनोरंजन का केंद्र माना जाने वाला नाच घर (डांस हॉल) अपनी सुंदर नक्काशी से पर्यटकों का ध्यान खींचता है। दुर्ग में स्थित जेल की कोठरी कठोर दंड व्यवस्था की याद दिलाती है।
भानगढ़ दुर्ग का आकर्षण सिर्फ ऐतिहासिक स्थलों तक ही सीमित नहीं है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह दुर्ग ऊंचाई से आसपास के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। ट्रैकिंग के शौकीन यहां ट्रेकिंग का आनंद ले सकते हैं। इसके अलावा, भानगढ़ दुर्ग से जुड़ी रहस्यमयी कहानियां और किंवदंतियां भी पर्यटकों के लिए रोमांच का विषय बनी रहती हैं।
यात्रा के लिए सुझाव:
चट्टानी इलाका होने के कारण मजबूत जूते पहनने की सलाह दी जाती है।
आसपास कोई दुकानें न होने के कारण अपना भोजन और पानी साथ लाएं।
गर्म जलवायु को ध्यान में रखते हुए सनस्क्रीन और टोपी का प्रयोग करें।
गाइड की सेवाएं लेने की इच्छा होने पर पहले से ही शुल्क तय कर लें।
भानगढ़ दुर्ग इतिहास और किंवदंतियों से भरपूर एक आकर्षक स्थान है। अपनी मनोरंजक कहानियों और सुनसान सुंदरता के साथ, यह राजस्थान घूमने वालों के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है।
भानगढ़ दुर्ग के आसपास के प्रमुख स्थल इस प्रकार हैं:
- सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान : वन्यजीव प्रेमियों का स्वर्ग
राजस्थान के अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों में बसा सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव प्रेमियों के लिए एक सपनों का स्थान है। 881 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह उद्यान बाघों सहित विभिन्न वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास है।

यहां आप शाही बाघों के अलावा, तेंदुओं, हाथियों, हिरणों, भेड़ियों और जंगली सूअरों को उनके प्राकृतिक वातावरण में देख सकते हैं। पक्षी देखने के शौकीनों के लिए भी यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। घने जंगलों, पहाड़ियों और घाटियों से भरपूर सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान प्राकृतिक सौंदर्य का एक अदभुद नजारा प्रस्तुत करता है।
उद्यान के अंदर स्थित राजपूत शैली का भव्य सरिस्का पैलेस इतिहास प्रेमियों को अपनी ओर खींचता है। पर्यटक रोमांचक जंगल सफारी का आनंद ले सकते हैं, जिसमें जीप सफारी और हाथी सफारी दोनों शामिल हैं। इसके अलावा, प्रकृति की गोद में ट्रेकिंग का रोमांच भी अनुभव कर सकते हैं।
अक्टूबर से मार्च का महीना सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान घूमने का सबसे अच्छा समय माना जाता है। दिल्ली, जयपुर और कोटा जैसे शहरों से ट्रेन, बस या टैक्सी द्वारा आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। भारतीय नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क केवल 25 रुपये है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए 600 रुपये है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सूर्यास्त के बाद पार्क में प्रवेश वर्जित है। पर्यटकों को वन्यजीवों को परेशान न करने का और पार्क के नियमों का पालन करने का अनुरोध किया जाता है। पार्क के अंदर भोजन और पेय पदार्थों की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान न केवल वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का शानदार अवसर प्रदान करता है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने और शांत वातावरण में कुछ यादगार पल बिताने का भी एक बेहतरीन विकल्प है।
- अलवर : राजस्थान का ऐतिहासिक शहर
अलवर, राजस्थान का एक रमणीय शहर, इतिहास और भव्यता का खजाना है। 8382 वर्ग किलोमीटर में फैला यह क्षेत्र अपनी समृद्ध विरासत के लिए जाना जाता है।

शहर का मुख्य आकर्षण अलवर किला है, जो राजपूत वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। इसके साथ ही, सिटी पैलेस अपनी भव्यता और कलाकृतियों से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। शांत जयसमंद झील नौका विहार का आनंद लेने के लिए एक आदर्श स्थल है, वहीं मूसी महल अपनी जटिल नक्काशी और कलाकृतियों से इतिहास प्रेमियों को अपनी ओर खींचता है।
अलवर वन्यजीव प्रेमियों के लिए भी स्वर्ग है। प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान बाघों सहित विभिन्न वन्यजीवों को देखने का शानदार अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, आसपास के क्षेत्रों में घूमने के लिए कई विकल्प मौजूद हैं, जिनमें नीमराना किला, बहरोड़ का किला और मंदिर, मुंडावर और मंडावा के किले और महल, नागर का किला और मंदिर, तथा मुगल बादशाह अकबर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक शहर फतेहपुर सीकरी शामिल हैं।
पर्यटक यहां ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण के अलावा, जयसमंद झील में नौका विहार, सरिस्का में जंगल सफारी, स्थानीय बाजारों में खरीदारी और राजस्थानी व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं। अलवर अक्टूबर से मार्च के महीनों में घूमने के लिए सबसे उपयुक्त है। यह शहर इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम पेश करता है, जो इसे एक यादगार पर्यटन स्थल बनाता है।
- नीमराना : इतिहास और विरासत का संगम
राजस्थान के दिल में बसा नीमराना शहर, इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता का संगम प्रस्तुत करता है। दिल्ली से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह आकर्षक शहर अपनी समृद्ध विरासत के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि इसकी स्थापना छठी शताब्दी ईस्वी में हुई थी।

6वीं शताब्दी से लेकर ब्रिटिश राज तक, नीमराना ने चौहान वंश, दिल्ली सल्तनत, मुगल साम्राज्य और अंग्रेजों के शासन को देखा है। इस समृद्ध इतिहास की छाप यहां के भव्य किलों और महलों में देखी जा सकती है।
नीमराना का मुख्य आकर्षण नीमराना किला है। अरावली पहाड़ियों पर स्थित यह 14वीं शताब्दी का किला, अपनी भव्यता से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। किले के अंदर स्थित हवेलियां, मंदिर और पानी के कुंड, इतिहास की कहानियां बयां करते हैं। वर्तमान में यह किला एक विरासत होटल में परिवर्तित हो चुका है।
नीमराना किले के अलावा, पर्यटक नीमराना फोर्ट पैलेस, जो मूल रूप से 16वीं शताब्दी का किला था और बाद में एक आलीशान महल में बदल दिया गया, को भी देख सकते हैं। धार्मिक स्थलों में 9वीं शताब्दी का नीमराना मंदिर, भगवान विष्णु को समर्पित है।
इसके अतिरिक्त, बाला किला और आसपास की पहाड़ियों में ट्रैकिंग का आनंद भी लिया जा सकता है।
नीमराना तक हवाई, रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। अक्टूबर से मार्च का महीना, सुहावने मौसम के कारण घूमने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इतिहास प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए नीमराना एक आदर्श पर्यटन स्थल है।
- बहरोड़ : इतिहास और धर्म का संगम
राजस्थान के अलवर जिले में बसा बहरोड़ शहर, इतिहास और धर्म का संगम पेश करता है। दिल्ली से करीब 140 किलोमीटर दूर स्थित यह शहर “अहीरवाल बेल्ट” का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 14वीं शताब्दी में स्थापित माना जाने वाला बहरोड़, अपने समृद्ध अतीत, धार्मिक स्थलों और जीवंत संस्कृति के लिए जाना जाता है।

शहर का नाम “बहादुर” शब्द से उत्पन्न माना जाता है, जो शौर्य का प्रतीक है। दिल्ली सल्तनत, मुगलों और अंग्रेजों सहित कई राजवंशों ने इस पर शासन किया है।
बहरोड़ का प्रमुख आकर्षण बहरोड़ का किला है। 14वीं शताब्दी में निर्मित विशाल किले के अंदर हवेलियां, मंदिर और पानी के कुंड जैसी संरचनाएं इतिहास की कहानियां बयां करती हैं। धार्मिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध, बहरोड़ में हर्षनाथ मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है,
जिसे 8वीं शताब्दी में बनाया गया माना जाता है। इसके अलावा, अग्रसेन की छतरी, जैन मंदिर, नीम का नाथ मंदिर, बावड़ियां और रंगीन बाजार पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं।
ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के भ्रमण के अलावा, पर्यटक स्थानीय बाजारों की सैर कर सकते हैं और राजस्थानी व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं। बहरोड़ तक हवाई, रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। अक्टूबर से मार्च का महीना घूमने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इतिहास, धर्म और संस्कृति के त्रिकोण पर स्थित बहरोड़, पर्यटकों के लिए एक आकर्षक स्थल है।
- मुंडावर : राजस्थान का ऐतिहासिक पड़ाव
राजस्थान के खैरथल – तिजारा जिले में बसा मुंडावर शहर, अपने समृद्ध इतिहास और भव्य स्मारकों के लिए पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। हालांकि स्थापना काल स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, माना जाता है कि मुंडावर का इतिहास काफी प्राचीन है। 14वीं शताब्दी में यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ और मुगल शासन के दौरान भी अपना महत्व बनाए रखा।
मुंडावर का प्रमुख आकर्षण मुंडावर का किला है। 14वीं शताब्दी में निर्मित यह किला मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। किले के प्राचीर के अंदर हवेलियां, महल और मंदिर जैसी संरचनाएं इतिहास की गाथाएं सुनाती हैं। धार्मिक पर्यटकों के लिए अचलेश्वर महादेव मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है और 10वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है, दर्शनीय स्थल है। इसके अलावा, मुंडावर में कई जैन मंदिर हैं, जो अपनी जटिल नक्काशी और कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
यहां सिर्फ ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि रंगीन हवेलियां शहर की विरासत को बयां करती हैं। पर्यटक स्थानीय बाजारों की सैर कर कपड़े, हस्तशिल्प और राजस्थानी व्यंजनों का आनंद ले सकते हैं। मुंडावर रेल और सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। अक्टूबर से मार्च का महीना घूमने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इतिहास और धर्म के संगम पर स्थित मुंडावर, राजस्थान की समृद्ध संस्कृति की अनुभूति कराता है।
- मंडावा : चित्रों की कहानी बयां करती हवेलियां
शेखावाटी क्षेत्र में स्थित मंडावा, राजस्थान की कलात्मक विरासत का खजाना है। जयपुर से करीब 190 किलोमीटर दूर बसा यह शहर, “हवेलियों का शहर” के नाम से विख्यात है।

17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान, मारवाड़ी व्यापारियों द्वारा निर्मित ये भव्य हवेलियां ही मंडावा की असली पहचान हैं। जटिल वास्तुशिल्प, रंगीन भित्ति चित्र और कलात्मक डिजाइन, इन हवेलियों की खासियत हैं। गोयन्दका हवेली, हनुमान प्रसाद पोद्दार हवेली, कुछ प्रसिद्ध उदाहरण हैं।
मंडावा का आकर्षण सिर्फ हवेलियों तक सीमित नहीं है। 18वीं शताब्दी में निर्मित मंडावा का किला, शहर के ऊंचे स्थान पर स्थित है। यह किला अब एक विरासत होटल में परिवर्तित हो चुका है। इसके अलावा, सेठानिया का जैन मंदिर अपनी संगमरमर की नक्काशी और कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है, व
हीं मुरमुरिया झील पिकनिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने का एक शानदार विकल्प है।
पर्यटक यहां हवेलियों के भ्रमण से इतिहास और कला को समझ सकते हैं, मंडावा किले की खूबसूरती निहार सकते हैं, जैन मंदिर के दर्शन कर सकते हैं, मुरमुरिया झील में पिकनिक मना सकते हैं, स्थानीय बाजारों की सैर कर सकते हैं और ऊंट सफारी का भी लुत्फ उठा सकते हैं (यदि उपलब्ध हो)।
अक्टूबर से मार्च का महीना, सुहावने मौसम के कारण घूमने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। मंडावा कला, इतिहास और संस्कृति का संगम पेश करता है, जो इसे राजस्थान में घूमने के लिए एक यादगार स्थल बनाता है।
- नागर : राजस्थान का कला और संस्कृति का संगम
अलवर जिले की धरती पर बसा नागर शहर, कला और संस्कृति का एक खूबसूरत संगम है। जयपुर से करीब 150 किलोमीटर दूर स्थित यह शहर अपने प्राचीन मंदिरों, भव्य किलों, रंगीन बाजारों और जीवंत संस्कृति के लिए जाना जाता है।
नागर की शान है नागर का किला। 14वीं शताब्दी में निर्मित यह किला अपनी भव्य वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व समेटे हुए है। किले के प्रांगण में स्थित हवेलियां, मंदिर और पानी के कुंड, इतिहास के गवाह बनकर खड़े हैं। धार्मिक पर्यटकों को अपनी ओर खींचने वाला जगन्नाथ मंदिर, भगवान जगन्नाथ को समर्पित है और जटिल नक्काशी एवं कलाकृतियों से सुशोभित है।
इसी तरह, भगवान कृष्ण को समर्पित गोकुलनाथ मंदिर अपनी मनमोहक वास्तुकला से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
नागर सिर्फ ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने चमचमाते बाजारों के लिए भी प्रसिद्ध है। ये बाजार कपड़े, हस्तशिल्प और राजस्थानी व्यंजनों की भरमार लिए पर्यटकों का स्वागत करते हैं। इसके अलावा, कलात्मक नक्काशी और भित्ति चित्रों से सजी हवेलियां और प्राचीन बावड़ियां (ступ कुंड) नागर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।
पर्यटक यहां ना सिर्फ ऐतिहासिक धरोहरों को देख सकते हैं बल्कि धार्मिक स्थलों के दर्शन, रंगीन बाजारों की सैर और आसपास के क्षेत्रों की यात्रा कर सकते हैं। राजस्थानी व्यंजनों का लुत्फ उठाना भी न भूलें। नागर तक रेल और सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। अक्टूबर से मार्च का महीना घूमने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। कला, संस्कृति, इतिहास और आस्था का संगम नागर, राजस्थान में घूमने का एक यादगार अनुभव प्रदान करता है।
- फतेहपुर सीकरी : अकबर का सपनों का शहर
फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक शहर, मुगल सम्राट अकबर की दूरदृष्टि का साक्षी है। 16वीं शताब्दी में निर्मित, इसे “भारत का भूत शहर” भी कहा जाता है। भव्य इमारतों, आलिशान किलों और प्राचीन मंदिरों से सुसज्जित, फतेहपुर सीकरी मुगलकालीन वैभव की याद दिलाता है।

शहर का प्रवेश द्वार ही इसकी भव्यता का परिचय कराता है। बुलंद दरवाजा, दुनिया का सबसे ऊंचा प्रवेश द्वार, लाल बलुआ पत्थर से निर्मित एक अद्भुत कलाकृति है। जमा मस्जिद, भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक, अपनी जटिल नक्काशी और स्थापत्य कला से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
इसी तरह, पंच महल अपनी अनूठी पांच मंजिलों और कलात्मक डिजाइनों के साथ, मुगलकालीन शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है।
शहर का मुख्य आकर्षण अकबर का किला है। विशाल परिसर के अंतर्गत हवेलियां, महल और मंदिर मुगलकालीन जीवनशैली की झलक देते हैं। धार्मिक पर्यटकों को सलीम चिश्ती का मकबरा और जोधा बाई का महल आकर्षित करते हैं। हिरण मीनार न केवल ऊंचाई के लिए बल्कि अपनी मनमोहक वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है।
फतेहपुर सीकरी सिर्फ दर्शनीय स्थलों तक ही सीमित नहीं है। पर्यटक यहां ऐतिहासिक भ्रमण के साथ-साथ स्थानीय बाजारों की सैर और आसपास के क्षेत्रों की यात्रा कर सकते हैं। अक्टूबर से मार्च का महीना, सुहावने मौसम के कारण घूमने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इतिहास और स्थापत्य कला का संगम फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश में एक अविस्मरणीय पर्यटन स्थल है।
- जयपुर : गुलाबी नगरी का आकर्षण
जयपुर, राजस्थान की राजधानी, “गुलाबी नगरी” के नाम से प्रसिद्ध है, अपने भव्य गुलाबी रंग के भवनों के कारण। यह समृद्ध संस्कृति, शानदार वास्तुकला और जीवंत बाजारों का खजाना है।

शहर के प्रमुख आकर्षणों में शामिल हैं – हवा महल, अपनी जटिल नक्काशी और 953 खिड़कियों के लिए विख्यात; आमेर का किला, ऐतिहासिक महत्व लिए एक विशाल परिसर; जंतर-मंतर, 18वीं शताब्दी की वेधशाला अपने जटिल खगोलीय उपकरणों के साथ; और सिटी पैलेस, शाही परिवार का निवास, भव्य वास्तुकला और कलाकृतियों से सजा हुआ।
यहाँ जल महल, मान सागर झील के बीच स्थित, और नाहरगढ़ का किला, शानदार शहर दृश्य प्रस्तुत करता हुआ, पर्यटकों को लुभाते हैं। अल्बर्ट हॉल संग्रहालय, राजस्थानी कला और संस्कृति का प्रदर्शन समेटे हुए, इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करता है। रंगीन वस्तुओं, हस्तशिल्प और राजस्थानी व्यंजनों से सराबोर बाजार खरीदारी के शौकीनों को रोमांचित करते हैं।
हवाई, रेल और सड़क मार्ग द्वारा सुगम संपर्क और अक्टूबर से मार्च का सुहाना मौसम, जयपुर को घूमने के लिए आदर्श बनाते हैं। यह शहर इतिहास, कला और संस्कृति का संगम पेश करता है, जो इतिहास प्रेमियों, कला प्रेमियों और धार्मिक पर्यटकों, सभी को आकर्षित करता है।
- आगरा : ताजमहल का शहर
आगरा, उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध शहर, यमुना नदी के तट पर बसा हुआ है। यह शहर “ताजमहल का शहर” के नाम से विख्यात है। मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया गया यह श्वेत संगमरमर का मकबरा, ना सिर्फ भारत की शान है बल्कि विश्व के सात अजूबों में भी शुमार है।

आगरा सिर्फ ताजमहल के लिए ही नहीं जाना जाता। यमुना नदी के किनारे स्थित आगरा का किला, मुगल वास्तुकला का एक बेमिसाल उदाहरण है। इतिहास प्रेमियों को 37 किलोमीटर दूर स्थित फतेहपुर सीकरी, मुगल सम्राट अकबर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक शहर, अपनी ओर खींचता है। वहीं सिकंदरा, मुगल सम्राट अकबर का भव्य मकबरा, अपनी कलात्मकता से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
आगरा की खूबसूरती सिर्फ स्मारकों तक ही सीमित नहीं है। मेहताब बाग यमुना नदी के किनारे स्थित एक मनोरम उद्यान है, जहां से ताजमहल का अदम्य सौंदर्य निखर कर सामने आता है। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर रामबाग और अपनी जटिल नक्काशी से सजी मोती मस्जिद दर्शनीय स्थलों में शामिल हैं।
कला और हस्तशिल्प प्रेमियों के लिए भी आगरा स्वर्ग है। संगमरमर की नक्काशी, जरी का काम और पीतल के बर्तन, यहाँ के प्रसिद्ध हस्तशैलप हैं। पर्यटक ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण के साथ-साथ स्थानीय बाजारों की सैर, यमुना नदी में नौका विहार और मुगलई व्यंजनों का लुत्फ उठा सकते हैं।
अक्टूबर से मार्च का सुहाना मौसम घूमने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। भव्य स्मारक, समृद्ध इतिहास और मनमोहक नजारे, आगरा को पर्यटकों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बनाते हैं।
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