महाकुंभ में अखाड़ा क्या होता है और कितने तरह के होते हैं? कैसे पड़ा था ये नाम? साधु लोग यही करते हैं स्नान

What is Akhara in Mahakumbh 2025
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Mahakumbh Mela 2025 :- महाकुंभ अखाड़ा भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक अहम हिस्सा है। महाकुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में एक बार चार पवित्र जगहों – प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है।

इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेला की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाकुंभ में स्नान करने से इंसान के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ के दौरान लोग सबसे ज़्यादा स्नान के लिए ही आते हैं, और यहां अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। महाकुंभ का संबंध समुद्र मंथन से जोड़ा जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला था, जिसे कुंभ का प्रतीक माना जाता है। महाकुंभ में कई साधु-संतों के अखाड़े देखने को मिलते हैं, और इन अखाड़ों की अपनी विशेष भूमिकाएँ होती हैं। आइए जानते हैं, अखाड़ों की संख्या और उनका महत्व क्या है।

कितने होते हैं अखाड़े?

देशभर में कुल 13 अखाड़े हैं। ये अखाड़े उदासीन, शैव और वैष्णव पंथ के संन्यासियों के लिए बनाए गए हैं। इनमें से 7 अखाड़े शैव संन्यासी संप्रदाय से जुड़े हुए हैं, जबकि 3 अखाड़े बैरागी वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखते हैं। इसके अलावा, उदासीन संप्रदाय के भी 3 अखाड़े हैं।

किसका प्रतीक हैं ये अखाड़े?

महाकुंभ मेले में साधु-संत पवित्र नदी में शाही स्नान करने जाते हैं। आमतौर पर ‘अखाड़ा’ शब्द पहलवानों की कुश्ती लड़ने की जगह के लिए इस्तेमाल होता है, लेकिन महाकुंभ में साधु-संतों के समूह को भी अखाड़ा कहा जाता है। हिंदू धर्म में अखाड़ों को धार्मिकता और साधना का प्रतीक माना जाता है।

किसने बनाया था ये अखाडा

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए कई संगठनों की स्थापना की थी, जिन्हें साधुओं के लिए खास तौर पर बनाया गया था। इन संगठनों को “अखाड़े” कहा जाता है, और इनका मुख्य उद्देश्य शास्त्रों का ज्ञान और धर्म की रक्षा करना था। अखाड़ों का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है।

कब है शाही स्नान

14 जनवरी 2025 – मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025 – मौनी अमावस्या
3 फरवरी 2025 – बसंत पंचमी
12 फरवरी 2025 – माघी पूर्णिमा
26 फरवरी 2025 – महाशिवरात्रि

सबसे पहले साधु संत करते हैं स्नान

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ में शाही स्नान करने से सभी प्रकार के पाप समाप्त हो जाते हैं और जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है। महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व होता है। इस स्नान के दौरान सबसे पहले साधु-संत आते हैं और स्नान करते हैं, इसके बाद आम लोग स्नान करते हैं।

कैसे पहुंचे महाकुंभ प्रयागराज

रेलवे से: प्रयागराज भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है और देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
निकटतम रेलवे स्टेशन: प्रयागराज जंक्शन (PRYJ)।
आप दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे शहरों से सीधे ट्रेन पकड़ सकते हैं।

सड़क मार्ग से:
प्रयागराज सड़क मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
आप अपनी गाड़ी, बस या टैक्सी से यहां आ सकते हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग 19 (NH-19) प्रयागराज को अन्य शहरों से जोड़ता है।

हवाई मार्ग से:
निकटतम हवाई अड्डा: प्रयागराज बामरौली एयरपोर्ट (Prayagraj Airport)।
यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा है।
हवाई अड्डे से टैक्सी या ऑटो द्वारा शहर पहुंचा जा सकता है।

नदी मार्ग से:
महाकुंभ के समय विशेष नाव सेवाएं मिलती हैं।
गंगा और यमुना नदी के जरिए कुछ जगहों से नाव सेवाएं ली जा सकती हैं।

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